Tuesday 2 August 2011

रूदन


दूर कहीं कोई रोता है...
रात के सन्नाटे में ,
खामोश वातावरण को चीरती..
आवाज़ सीधे हृदय में उतरती है....
व्यथा बनकर..
करुणा बनकर.....!!
    रूदन का कोई धर्म नहीं होता
    कोई जाति नहीं होती....
    हृदय से हृदय का जुडा तार है ,
    जो दुख में झंकृत होता है ,
    पीडा बनकर..
    दर्द बनकर.....!!
मन व्यथित हो जाता है
पता नहीं किसका क्या खोया है..
ऐसी कौन सी बात हो गई है
जो सहन शक्ति की सीमा लाँघ गई है...
और वातावरण को रुला रही है ,
प्रलाप बनकर..
विलाप बनकर.....!!
    इस नश्वर संसार में
    चहुं ओर फैला माया जाल है
    मोह का बंधन ,जो जरा से झटके से
    टूटता है और टूटकर असह्य
    पीडा देता है.....
    बडी से बडी और ,
    छोटी से छोटी बात...
    दर्द का स्वरुप बन जाती है
    चाहे वह क्षणिक विरह हो
    या जीवन पर्यन्त ...
    न भरने वाले घाव....!!
पीडा तो पीडा होती है...
सदा करूण..
सदा मार्मिक....
और फिर क्रन्दन तो हाहाकार है...
कातर हृदय का...
जो सीधे मन तक जाता है
हर हृदय को झकझोरता है....
दूर कहीं कोई रोता है...
                      

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