Sunday 21 August 2011

उसने कहा



उसने कहा…
वह स्वभाव से गंभीर है
जो वह देख रही,
ऐसा नहीं है वह्…
दुनिया के सामने हंसते मुस्कुराते रहना
उसकी असलियत नहीं…
जब भी अकेला होता है
अपने विचारों के गहन आकाश में
कहीं खो सा जाता है,
एक आकाश उसके बाहर है
जिसमें पंछी हंसते गाते रहते हैं,
एक उसके मन के भीतर,
जहां सन्नाटा है…खामोशी है…
वह क्या कहती…
इतना ही बोली,
पर मैं तो ऐसी नहीं
अच्छी बुरी हर बात को
उसका आशीर्वाद समझ कर ग्रहण करती हूं
 बिगाड़ने वाला भी वही
 संवारने वाला भी वही
 हमें तो कठपुतली की तरह नाचना है बस…
 उसने उसकी ओर गहरी निगाहों से देखा
 बोला कुछ नहीं………
 वह कहने लगी
 जिन्दगी छोटी है
 क्यों न दोनों आकाशों के बीच एक
 छोटा सा झरोखा बना लें !
 बाहर के आकाश से हंसते गाते पंछी
 भीतर भी आ सकें
 मधुर मधुर गा सकें
 तब दोनों आकाश मिलकर कितने बडे हो जाएंगे…………
 हाँ !!
 और उस झरोखे से चांद सूरज झांक सकेंगे
 क्यों…?
 वह हौले से मुस्कुराया
 खुश हो गई वह…॥
 पर चांद सूरज
  झांककर देखेंगे क्या…?
    वह फ़िर गडबडा गया
    बोला-----------
    देखेंगे---फ़ूल ही फ़ूल
  कितने सारे फ़ूल
  आकाश में फ़ूल…?
  वह खिलखिलाकर हंस पडी
  अरे धत ! मैं भी न  !!
  वह कैसे कहे कि कहना तो कुछ और ही चाहता है
  पर यूं मुखरित होने की
  उसकी आदत नहीं………
  किसी ने उसके मन को इतने
  करीब आकर छुआ ही नहीं
  खूब धीरे से बोला
  तो फ़िर तुम ही कहो
  वह बोली
  चांद सितारे देखेंगे
  एक नई नजर, एक नया नजरिया
  एक छोटी सी नाव और एक छोटी सी दरिया
 यूं ही तुकबंदी कर दी उसने
 सोचने लगी अब क्या कहे…
 वह कहीं खो सा गया
 कहने लगा---
 नाव में बैठे दो प्राणी
 एक चांद एक उसकी चांदनी
 उसने भी मन को छू दिया हौले से
 शरमा गई वह
 नजरें झुका ली
 चुप हो गए दोनों
 खामोशी बोलने लगी
 फ़िजाएं सुनने लगीं………
 एक मधुर कल्पना लोक में
 चले गए दोनों
 हर तरफ़ रौशनी ही रौशनी
 हर तरफ़ आनन्द ही आनन्द……।

 











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