Tuesday 2 August 2011

कभी तो सुनो


   यह कौन सी जगह है
   पास समंदर का किनारा है
   हहराती हुई लहरों की
   आवाज़ आ रही है......
     लगता है हमें बुला रही है....
     एक सी दिनचर्या से
     ऊबा हुआ मन
     भागना चाहता है
     भागकर आऊँ
     और यहाँ छुप जाऊँ
     तो कोई जान तो नहीं जाएगा
     हमें ढूँढ तो नहीं पाएगा....
     तुमने कहा--------
     नहीं....!
     शायद अच्छी जगह है
     इस बात के लिए ,
     जो मौसम को जीना हो शिद्दत से
     तो घनघोर बरसात के लिए...
     मन मचल उठा ..
     चलो न..
     हाथ पकड़कर चलते हैं
     भींगते-भींगते जाएंगे
     समंदर को छू कर आएंगे....
     अचरज भरी निगाहों से
     तुमने देखा..
     मेरे अन्तर में उठते
     हिलोरों को पढ़ने की कोशिश की.
     और धीरे से कहाचलो !
     ऐसे ही मन में उठते हैं
     भावों के ज्वार भाटे
     जैसे समंदर में उठती हैं लहरें
     लपककर आती हैं
     घुटरुन लौट जाती हैं
     हमें फिर फिर बुलाती हैं...
     हम उम्र के किसी पडाव पर हों
     बचपन छुपा होता है
     अन्तस में....
     झाँकता रहता है गाहे-बगाहे
     लुक-छिप कर ।
     लपककर आती हैं
     बालमन सी अबोध लहरें
     हिलोरें बनकर
     अक्सर.....!!
     लौट जाती हैं दबे पाँव
     मन मसोसकर..
     हम जी नहीं पाते उन्हें
     उम्र का लिहाज कर जाते हैं
     पास परिवेश को
     अनदेखा नहीं कर पाते
     अपने मन की सुन नहीं पाते....।
       आओ न------
       इन घडियों को
          साथ साथ जिएँ
       रूप रस गंध बिखरे
          प्रकृति के कण कण में
       साथ साथ पिएँ
       कभी तो सुनो दोस्त.!
          दुनिया जहान को परे हटाकर    
       रिश्तों नातों ,देश दिशाओं
        को क्षण भर भुलाकर
       अपने मन की आवाज़
       कभी तो सुनो..........॥

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