Friday 26 August 2011

रमण उठ


उठ, रमण उठ…!
बालों में उंगलियां फ़िराती
पुचकारती
अम्मा जगाती
उजाला अभी धरती पर
उतरा नहीं तो क्या
ठंढ से हाथ पांव
सिकुडे जाते हैं तो क्या
नलके में पानी आया होगा…
हौसला रख
प्रभु को नमस्कार कर
कुछ न कुछ आज
कमा लाएंगे
अन्न के कुछ दाने भी
पा जाएंगे
कल रात की तरह
भूखे पेट सोना नहीं होगा
ओढने को कुछ कपडे भी पा जाएंगे

उसकी लीला
है अद्भुत, न्यारी
छांव और धूप
सभी को मिलते बारी बारी

दिन एक से रहते भी नहीं
हर रात के बाद
सबेरा आता है
फ़ूल खिलते हैं हर पत्झड के बाद
दुख भी जाएगा
मेरे बच्चे…!
सुख के दिन भी जरूर आएंगे
अबोध आंखों में सपने जगाती
अपने आंसू छिपाती
अम्मा जगाती
बेटा उठ………॥

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