मैं करती थी सिंगार
कि देखा...
दर्पण में कोई झाँक रहा..
दिल धड़क उठा बेधड़क मेरा
क्या करूँ कि तू कुछ बोल सखी
मन मेरा डाँवांडोल सखी.......
न नैन खुले न पलक उठे
तन थर-थर-थर-थर काँप रहा
मैं प्रेम लहर में बहती रही
बिन बोले सब कुछ कहती रही
ये बात बडी अनमोल सखी
मन मेरा डाँवाडोल सखी.......
क्या लुट गया मेरा पल भर में
क्या मिल गया आनन फानन में
उस एक झलक पर चित्त हारी
लो जीत गई सारा जग ही
मैं बिक गई दिल के मोल सखी
मन मेरा डाँवाडोल सखी.........
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