बांधती है नजर
हर समय,हर घडी
मोतियों से बनी
सुनहरे धागों की
चिलमन,
चिलमन,
और उसमें टंके
छोटे छोटे घुंघरू,
हवा जब जब चलती
बज उठते घुंघरू
छन छन छनन छनन…
अब सोचती हूं
हर मन खिडकी ही तो है
जिसपर टंगी है
अनगिनत यादों की चिलमन
वक्त बेवक्त छनकते रहते हैं घुंघरू
और उत्फ़ुल्लित होता रहता है मन…
ऐसी होती हैं यादें…
रोम रोम में बसी
गहरे कहीं अंतर में समाई
कि जाएं कहीं भी
रहें हम कहीं…
जागे या सोए,रहें खोए खोए……
इन्हीं यादों में है
किसी का मिलना
और बेतकल्लुफ़
गले से लिपटना
गले से लिपटना
मन का खुल जाना बे लाग-लपट,
ह्रदय की कली का
तत्क्षण खिलना……
कभी तो किसी के
हाथों में हाथ डाले
तय करना सफ़र
अनदेखा ,अनजाना ,
कभी आंखों आखों में
गुपचुप बतियाना…
कभी तो अकारण हंसना हंसाना
कुछ सोचना और बस मुस्कुराना………
चांद तारों से जिसने
ये दुनिया सजाई,
उसने ही ख्वाबों की
चिलमन बनाई…
यादों के घुंघरू जब भी छनकते
ताल देती है धडकन,
नाच उठता है मन…………
छन छन छनन छनन….
छन छन छनन छनन….
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