Wednesday 22 August 2012

ये गांव


देखने में छोटे मगर
दिल के बड़े गांव....
माटी से जुड़े किस्से
किस्सों से भरे गांव....

बचपन यहां है खेलता
जी भर के कई खेल
पल भर के ही उलाहने
पल भर में करें मेल

मौसम यहां उड़ेलता
दिल खोल के सौगात
रिमझिम बरसती बूंदें
बूंदों की अलग बात

पंछी यहां करते हरेक
डाली पे बसेरा
हर कीट पतंगों का
हरेक शै पे है डेरा

त्योहार यहां आते
तो ठहर जाते शौक से
सुख दुख सभी निभाते
यहां  मिल के बांट के

कहीं नीम झले पंखे
कहीं बरगदों की छांव...
माटी से जुड़े किस्से
किस्सों से भरा गांव...

मंदिर की घंटियां ही
जगातीं हैं नींद से
हर  सांझ सुलाती है
सदा लोरियां गाके

अपने पराए का नहीं है
भान किसी को
ये गांव एक कुटुंब है
यही ज्ञान सभी को...

बेटियां हैं गांव की
बहुएं हैं गांव की
बात मान अपमान की
या आन बान की...

न ऊंच नीच है यहां
न भेद भाव है
अच्छा बुरा है जो भी है
बस पूरा गांव है.

मिट्टी के घरौंदे हैं
और कागजों की नाव
माटी से जुड़े किस्से
किस्सों से भरा गांव....

हर ठौर बसे खुशियां
मुस्कान हरेक ठांव
माटी से जुड़े किस्से
किस्सों से भरा गांव......

Tuesday 21 August 2012

बूंद बनाकर रखना


धारा मुझको नहीं बनाना
अलग थलग हो बहूं...
अपने तट की ,तटबंधों की
सीमा में ही रहूं.......

बूंद बनाकर रखना प्रभुवर
स्वार्थ विमुख रह पाऊं
सागर में मिल जाऊं
तो मैं भी सागर कहलाऊं....

हरी दूब पर रहूं कभी
बादल संग लहराउं
गिरुं अगर सीपी के मुख में
तो मोती बन जाऊं.....

कभी कभी


कभी कभी  
जाने क्यों
ऐसा लगता है 
जैसे
जिंदगी दबे पांव
गुजरती जा रही हो 
बिना किसी सुगबुगाहट के...
गुपचुप गुमसुम

देखते देखते कितना ही फासला
तय हो जाता है
उम्र कई कई सीढ़ियां फलांग जाती है
कुछ पता ही नहीं चलता 

आश्चर्य होता है
कैसे बीत गया वक्त
 
पांव में पैजनियां तो थी
फिर 
नूपुरों की झन्कार
कैसे नहीं सुन पाए हम
कहां खोए रहे.....
 
वक्त खो गया कहीं
या
हम सम्मोहन में बंधे रहे
हां !
जीवन सम्मोहन ही तो है
जीने की धुन
और उसपर अहर्निश थिरकता जीवन


प्यार बांटती दुनिया
और प्यार समेटता अपना मन

ज्ञान और प्रेम के बीच
अनवरत चलती खींच तान 

ज्ञान के मुख से
जितनी आह निकलती
प्रेम उतना ही डोर खींचता जाता 
ज्ञान जिसे भटकन फिसलन कहता
प्रेम उसी में डूबता जाता

यह खूबसूरत दुनिया
पल पल जीने का पैगाम देती  है
जी भर जीने का...
यूं पलकें मूंदे गुजारने नहीं कहती

कदम कदम पर
बिखरी खूबसूरती
रोम रोम से पीने का पैगाम देती है
छ्क कर पीने का...
यूं नजरें झुकाए गुजर जाने
नहीं कहती...

कोई नहीं जानता
आने वाला कल कैसा होगा
पर गुजरे पलों को
विसार पाना मुमकिन है क्या

एक पल
कोई एक पल
मन में फिर फिर मिठास भरने की
क्षमता रखता है
नहीं रखता क्या....

हर पल अनमोल हैं
जीवन के हर पल
कहते हैं 
जियो
बार बार जियो
मगन होकर जियो

उन्हीं पलों को
जो भरते हैं तन्मय होकर
जीने की लालसा
मधुर स्वप्न की तरह
रखते हैं
हमें हरदम मशगूल

सुनो
ध्यान से सुनो
बार बार पुकारकर
ये सुधि भीने क्षण कहते हैं

चल चंदन वन से चुन लाएं
कुछ खुशबू वाले फूल ...
  

यादों के सिरे थामकर


यादों के सिरे थामकर
सम्मुख है वर्त्तमान
आंखों में आंखें डालकर
            पूछता है हाल....
झकझोरता है मन को
दिल को खंगालता
कर्तव्यों की बाबत है
            पूछता सवाल....
वो बाग बगीचे
लड़कपन जहां बीता
वो आंगन वो देहरी
वो गली और दरीचा
क्या कर रहे हैं हम अभी
         उन सबकी देखभाल.......?
वो बांहों के झूले, मगन
जिनमें था बालपन
जिन आंखों के सपनों में
पलता रहा बचपन
क्या हो रही है उन सभी
       रिश्तों की साज संभाल...?
वो संगी सखा ,जो थे
कभी जान से प्यारे
बांहों में बाहें डाल
मधुर घड़ियां गुजारे
क्या पूछ लेते हैं कभी
       उनका भी हाल चाल......?
यादों के सिरे थामकर........