Tuesday 2 August 2011

औरत



तू कितनी भोली है...
स्वयं को पूर्ण समझती है
जरा अपने हृदय के
टुकडे गिन कर तो देख....!!
       तू जब फेरे लेकर आई
       समझने लगी
       आज मैं पूर्ण हो गई..
       दो मन एक हुए
       दो जान एक हुए......
लेकिन तभी तुम्हारे हृदय का
एक टुकडा हुआ
जो हर वक्त अपने उनके लिए
धडकने लगा ,अलग से......
तू कहीं हो
किसी भी हाल में हो
उनकी खैर मनाता रहा
उनकी सलामती चाहता रहा...!!
     फिर तू माँ बनी
     समझने लगी
     अब मैं पूर्ण हो गई...
     पूर्ण नारी..
     एक पूरी औरत...
     लेकिन तभी तुम्हारे
     हृदय के फिर टुकडे हुए
     और होते गए...........!!
आज तू कुछेक बच्चों की माँ है
एक प्रिय पति की अदद पत्नी भी..
समझती है तू पूर्ण है....
जरा अपने हृदय के
टुकडे गिन कर तो देख....!!
    एक अपने
    चुन्नू के लिए धडकता है
    जो दिल्ली में पढता है....
    एक अपने
    मुन्नू के लिए धडकता है
    जो हॉस्टल में रहता है....
    एक अपनी
    गुडिया के लिए धडकता है
    जो ब्याही जाने वाली है...
    और एक..
    और एक...
    फिर भी समझती है
    तू पूर्ण है....??
हृदय के एक एक टुकडॆ
ग़िन रही है...
गुमसुम बैठी
एक एक धडकन गिन रही है....
फिर भी समझती है...
कि तू पूर्ण है...  

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