अनंत काल से अभी तक
अनवरत .....
सागर की उफनती लहरों पर
चंचल चंद्र किरणें
थिरकती आईं..........
शंखों सीपियों संग
करती कुछ मीठी बातें
और मछलियों संग अठखेलियाँ
करती आईं.......
तट की रेती पर
मौजों की मस्ती का
महाकाव्य कोई लिखती
और मिटाती आईं....
कृष्ण पक्ष में धीरज धरना
उजियारे को पल पल जीना
चिर काल से ये किरणें
जीवन का मर्म बताती आईं....
मुट्ठी भर भर ,लहरों पर
मोती के दाने
दूर क्षितिज तक मुक्त हस्त
बिखराती आईं.....
दो हाथों से बटोर इन रत्नों को
कोई ला नहीं सकता
मैं अपनी आँखों में
सब सहेज कर लेती आई....
अनंत काल से अभी तक
अनवरत..........
सागर की उमडती लहरों पर
रुपहली चंद्र किरणें
रुप बरसाती आईं........
Sundar.
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