Tuesday 16 August 2011

कोई तो है


कोई है ,जो
खुली आंखों तो नहीं दीखता
पर पलकें मूंदते ही
स्नेहिल मुस्कान बिखेरता
धमकता है ,
जिसे देखते ही
थकान दिन भर की
मिट सी जाती है
जो अक्सर आवाज़ देकर
रोक देता है उन कदमों को
अनमने होकर जो बढे चले जाते हैं
अनजानी दिशा में…!
जिससे मिलने की
चाह अक्सर होती है भीड भरी राहो में
भटकते मन को !
जिसके कंधे की
तलब होती है
टिकाने को सिर अपना 
कभी जब आंखें भीगी होती हैं ,
और पलकें भारी भारी
व्यथा के मोती से……!
कोई है जो
मन को भटकने नहीं देता
थाम लेता है हाथ बढाकर…
कदमों को फ़िसलने नहीं देता
रोक देता है
भले बुरे की पहचान बताकर
तन्हा राहो पर
सदा साथ हुआ करता है
जो मेरे सपनों को
सच होने की
तहे दिल से दुआ करता है
कोई तो है……|

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