Tuesday 2 August 2011

ऐ जिन्दगी.....



ऐ जिन्दगी ,
 ठहर जरा.....
  धीरे कदम बढा ....
   उम्र की घडियों को
    जी भर जी तो लूँ....!
कुछ आगत की
 सुख भरी कल्पनाएँ हैं..
  कुछ विगत की पीडाएँ
   हमकदम बनकर
अबतक सँग चली आईं..
     इनसे विदा ले लूँ......!
कुछ रिश्ते हैं
 जाने अनजाने
सरे राह बनते चले आए
   अंतस को अब तलक
    छूते चले आए....!
कुछ वादे हैं
 चेतन अवचेतन मन ने
हर पडाव पर,हर मोड पर
रहबरों से किये हैं...
     इन्हें निभा लूँ...........!!
कोई मकसद है ..
 जहाँ में आने का.
  प्रखर चेतना वाला
   मानव तन पाने का...
    उस अलौकिक सत्ता को
     दिया जो वचन
      उसे पूर्ण कर लूँ.....!!
एक अनुष्ठान है अगर
जीवन पथ का यह सफर
  ऐ जिन्दगी.!
   इतनी मोहलत तो दे
    कि सलीके से
     पूर्णाहुति कर लूँ.....!
पाया जन्म जिनसे
उनसे उऋण हो लूँ
  और लय रहे कायम
सृष्टि चक्र का
    सो कुछ नये
बुनियाद भी रख लूँ....!
ऐ जिन्दगी..
ठहर जरा.....
... धीरे कदम बढा
उम्र की घडियों को
       जी भर जी तो लूँ........!!
                              

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