नव प्रभात की
कोमल किरणें
लुकती छिपती
रतनारे नयनों को मलती
गाल थपक कर धरती को
अहले सुबह जगाने आईं……
चिडियों की टोली
तो निकली
अंबर की सीमा को छूने
भंवरों के दल गुनगुन करते
फ़ूलों पर मंडराने आए…
उषा ने हडबड में अपनी
मोती की माला तोडी
हरी दूब पर ,
चमचम चमचम
मोती के दाने बिखराए…
ठंढी हवा मतवाली होकर
सप्तम सुर में गाने आई
नव प्रभात की
कोमल किरणें
धरती, अंबर ,सागर ,पर्वत
खग म्रृग सबको
बाल व्रद्ध को
अहले सुबह जगाने आई…………
good. keep it up
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