अजन्मी कन्या करे पुकार
माँ मुझे जन्म लेने दो....
जुड गई हूँ तुम्हारे अस्तित्व से
तुमने चाहा या न चाहा
सोचने का वक्त अब नहीं रहा
मुझे जन्म लेने दो.......
अवतार तो तुम भी हो शक्ति का
ढाल बनकर रोक लो ...
वार सब संसार के
अपने आँचल की छाँव में
निर्भय होकर पलने दो......
गूँजेगी आँगन में तेरे
किलकारियाँ मेरी......
सुनोगी पाँव की रुनझुन
सदा झंकार सी......
महकेगा दामन तेरा
अनगिन खुशियों से....
कली हूँ तुम्हारी बगिया की
मुझे खिलने दो....
सहचरी बनूँगी तुम्हारी
चौके में ,पनघट पर भी
बढकर पोछूँगी आंसू तेरे
सुख दुख में गले लगकर भी...
मुझको भी ऊँचे उडना है..
पर उंगली थाम के बचपन को
नन्हे कदमों पर चलने दो........
बॆटियाँ जब भार थीं
वह समय बदल गया
बेटे बेटियों में फर्क अब नहीं रहा
कदम मिला कर चलूँगी
नाम रौशन करूँगी
बेटों से कम तनिक भी नहीं पडूँगी
मुझे अवसर तो मिलने दो....
कुछ तो कर्ज है माँ
तुम पर भी सृष्टि का.....
जननी हो तुम...
जननी मैं भी बनूँगी
रोको मत !! सिलसिला निर्बाध यह
चलने दो.....
मुझे जन्म लेने दो..!!
बेटे की चाह में भ्रूण हत्या बेटियों की बढ़ी है. सरकार को कानून बनाना पड़ा है कि भ्रूण जाँच नहीं होगा. वावजूद इसके धड़ल्ले से कानून तोडा जा रहा है. एसे में आपकी कविता माँ मुझे जन्म लेने दो प्रासंगिक और मार्मिक है
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