Tuesday 2 August 2011

फुर्सत के पल


हँसते पँछी ,गाते भँवरे
मन को बहुत रिझाते..
फुर्सत के कुछ पल मिलते तो
वन उपवन में जाते...!
        खिली अधखिली कलियों से
        करते कुछ बातें.....
        और विहँसते फूलों
        सँग मुस्काते.......
भँवरों की निश्छल गुँजन में
तितली की चंचल चितवन में
मन के सब अवसाद भूलकर
कुछ पल हँसते गाते.......!
        फुर्सत के कुछ पल मिलते तो
        सांध्य भ्रमण कर पाते....
        उषा की स्वर्णिँम किरणों का
        जी भर लुत्फ उठाते......!
शरद काल की धूप सुहानी
बरिश की बूँदों का पानी
बचपन के अलमस्त जमाने
अक्सर याद आ जाते.......!
        कहाँ गई फुर्सत की घडियाँ
        कहाँ गये विश्राम के दिन
        कहाँ गया निश्चिंत विचरना
        बिन चिंता के ,उलझन बिन...!
भाग दौड की दिनचर्या ने
छीन लिये राहत के पल-छिन
छीन लिये सब हँसी ठिठोली
और तनिक आराम के दिन....!
        सागर पर्वत बाग बगीचे
        हमको सदा लुभाते
        फुर्सत के कुछ पल मिलते तो
        हम उनसे बतियाते.....!
        कुछ उनके मन की सुनते
        कुछ अपनी उन्हें सुनाते.!
तन की सुख सुविधा की खातिर
            साधन लाख जुटाये हमने
                      फुर्सत के कुछ पल मिलते तो
                       मन को सुख दे पाते
                       मन को सुख दे पाते.......!!!!

2 comments:

  1. Fursat ke pal mein aap ke likhe kavita ko padhna bada acha lagta hai....

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