Tuesday 2 August 2011

जीवन की गति


बडे जतन से बाग लगाया
रंग बिरंगे फूल उगाए.....
कांटे चुन चुन अलग हटाया
देख देख मन अति हरषाए..
                      
एक दिन ऐसी आँधी आए
फूल झरे ,पौधे मुरझाए....
जीवन की गति ये ही सच्ची
जो आया है एक दिन जाए...
                      
ऐसी ही जीवों की कहानी
पिंजरा ये तन खूब लुभाए
सुख दुख दोनों से भरमाकर
कष्ट अनेकों सहता जाए....
                 
उम्र सगर पिंजरे में बीते
बचपन,यौवन,सारा जीवन..
रोग, शोक माया के बंधन
हर क्षण और जकडता जाए....        
                        
फिर एक दिन खुल जाए पिंजरा
पंक्षी उड जाए देश पराए...
सूना पिंजरा लोर बहाए
पंक्षी उड गया बिना बताए...
                      
जब तय है यह होना एक दिन
जो आया है जाए एक दिन
जीव सत्य है काया नश्वर
माटी में मिल जाए एक दिन...
                              
चाह के भी कोई रोक न पाए
फिर काहे मन समझ न पाए
पिंजरा छूटा , बंधन छूटे..
पुलकित मन उडता ही जाए..
चारों दिशा अद्भुत उजियारा
दिव्य लोक में गोते खाए...!
                        
           पिंजरे में कैदी था अब तक
                     पंख कटे पंक्षी सा अब तक
                    मुक्त हुआ अब तो फिर काहे
                   सूना पिंजरा लोर बहाए....?
                   काहे दुनिया शोक मनाए..??

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