Monday 1 August 2011

बसंत गीत


सघन कुंज कोयलिया गाए..
मधुर प्रभाती रोज सुनाए....
वन पलाश फूले ,मुस्काए..
खिल गए सब गुलनार सखी...
       नए नए अरमान संजोए
       नव प्रभात की कोमल किरणें
       चली उडाते सुख सपनों को
       आज क्षितिज के पार सखी...
रंग झरे, मकरंद बिखेरे
मंद पवन के सुखद झकोरे
मंजरियों से भर गई शाखें
इत उत उडत सुबास सखी....
     वातायान से झांक रही हैं
     साँझ सुबह ऋतुराज की आँखें
     हिय हुलसे मन रह रह चिहुंके
     फिर आया मधुमास सखी...
कण कण में उमगे वसंत नव
मधुर प्रेम रस छलके हरदम
याद करे मन नंद नंदन को
एक झलक की आस सखी.....
                          
                          

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