प्रबल होती हैं
आदमी की अपनी तमन्नाएँ
अपनी इच्छा शक्ति
बाकी सब गौण.......
क्या फर्क पडता है
कि , रास्ते टेढे मेढे हों
या कि सीधे सरल......
मौसम खुशगवार हो
या कि तूफानी
आस पास कोलाहल हो
या फिर एक मौन....
क्या फर्क पडता है
कि अपनी मंजिल करीब हो
या कि बहुत दूर.....
घर अपना ,फूलों के शहर में हो
या फिर कहीं और....
फर्क पडता है इस बात से कि
हाथों को थामने वाले
हाथ हैं कि नहीं
किसी निहायत अपने का
साथ है कि नहीं....
हमदम ,हमसफर ,हमकदम है कौन.......
प्रबल होता है प्रारब्ध अपना
कर्म अपना
, भावना अपनी
कामना अपनी
बाकी सब गौण...................
Bahut-bahut sundar.
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