छोटे छोटे सपनों की
छोटी सी उडान...
कहाँ लिए जा रही है
कि पाँव के नीचे से
जमीन छूटती जा रही है....!
घर बार
सँगी परिवार
सभी छूटते जा रहे हैं.....!!
आँखें मल मल कर देखती हूँ
सब कुछ ओझल होता जा रहा है
दूरी बढती ही जा रही है..!!!
खुली हवा और
आजाद वातावरण
अपने आगोश में
समेटता जा रहा है......!
जितना हल्का फुल्का होकर
मन विचरण करता है
उतना ही बोझिल बोझिल
अंतस.........!!
भींगी पलकें और
मोह के बंधन की तडप
विचलित करती है....
कहाँ भूल हुई..?
ऊँचे ख्वाब और बडे सपने
हमसे हमारी माटी ही छीन ले ,
घर बार छुडा दे....
माँ का आँचल और पिता का
आँगन छुडा दे......
भाई का संग और
सहेलियों का साथ छुडा दे...
ऊँची शिक्षा के बहाने
कुछ कर पाने के बहाने..
पराए देश जाकर बसना पडे..
तो फिर बालमन
सपने कैसे देखे..?
क्योंकर देखे.....??
ऊँचे और ऊँचे उडने की
हिम्मत कहाँ से बटोरे..?
और अपनों से बिछडकर
कहाँ तक मंजिल हासिल कर सके....??
पर मुनिया ....... हारेगी नहीं हिम्मत
बरकरार रखेगी हौसला
जरुर देखेगी ऊँचे सपने
और करेगी हासिल
अपनी मँजिल......!
समेटकर मुट्ठी में आसमां
लौटॆगी घर अपने
माँ के आँचल की छाँव....
पिता के अंगना
सहेलियों के गाँव.....
एक दिन.......!!!
No comments:
Post a Comment