कविता एक उडान है
मन की.....
मन के नाजुक सुकुमार भावों की....!
कभी फूल सी कोमल ,सुन्दर
महकती....
वातावरण को महकाती....!
कभी भँवरे सी गुनगुन करती
उपवन में मुस्काती........!!
कभी चातक की प्यास बुझाती
स्वाति के बूँदों सी....
कभी मन की ब्यथा को
बूँद बूँद बरसाती
अश्रु कणों सी.........!
कभी चाँद की कलाओं संग
घटती बढती ......
लहरों की धडकन सी....
और कभी ह्र्दय के तार छेडती
सात सुरों के सरगम सी....!!
कविता माला है
गुँथे हुए शब्दों की
कुछ स्नेहसिक्त अवगुंठन में
रस भरे भावों के
धागे में पिरोई.....
कहीं और बैठी
कहीं और खोई......
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