Monday 1 August 2011

अम्मा मैं परी तुम्हारी

 अम्मा..!
 मैं परी तुम्हारी......
 .
तुम तो कह्ती थीं
मैं जादू सी हूँ.....
मेरे पहले कदम ने
जीवन भर दिया था
तेरे आँगन में......!!
कभी तितली सी उडती फिरती थी 
फूलों सी हँसती और
भँवरे सी गुनगुन करती थी...,
रँग भर दिया था
मेरी हँसी ने तेरे 
जीवन के हर क्षण में.....!!
कभी चाँद सी
लुकती छिपती
तारों सी चकमक
और जुगनू सी जगमग करती थी...
उजाला भर दिया था
मेरे बोलों ने
तुम्हारे मन प्राँगण में........!!!
तुम ही तो कहती थीं.......
रह न पाओगी
एक पल भी बगैर मेरे........
फिर ऐसी क्या बात हो गई ??  
देखते देखते मैं पराई क्यों हो गई..??
मैं तो रह लूँगी अम्मा..!
तुमने सिखाया है
कभी भी ,कहीं भी खुश रहना
अनजानी राहों पर
आत्म विश्वास भरे कदम धरना
और अनचीन्हे चेहरों में
अपनापन तलाश लेना......!!
पर तुम क्या करोगी..
जब आँगन में सबेरे सबेरे
मेरे बचपन की सहेली मैना आएगी.....
मुझको पूछेगी..
तुम क्या कहोगी...??
रोज तुम्हारे कुँवर कन्हैया के लिए
नए फूलों की माला कौन बनाएगा.......
दीवाली पर ...........
तुम्हारे बगल में खडे होकर..
फुलझडियाँ कौन जलाएगा...?
तुम्हारे घर के चप्पे चप्पे..
रँगोलियाँ कौन बनाएगा......?
तुम्हारी हथेलियों पर मेंहदी
कौन लगाएगा..
तुम्हारी साडी की चुन्नट और
और टॆढी मेढी चोटी
कौन रोज सँवारेगा.........??
अम्मा..!!
पर गम ना करो
एक पल को भी आँखें नम ना करो..
मैं आऊँगी..
तुम्हारी एक ही आवाज़ में...
तुम्हारे आँचल की छाँव
तुम्हारे अँगना तुम्हारे गाँव.........!!

1 comment: