Thursday, 25 August 2011

जी चाहे


जी चाहे मेरा
ऊंचे उडना
जी चाहे
आकाश को छूना
जी चाहे
उनमुक्त विचरना
पर चाहे संसार
काट मेरे पंख
मुझे पिंजरे में रखना…
                   
जी चाहे मैं
पर्वत पर्वत
मस्त पवन सी घूमूं
सागर को मुट्ठी में लूं
और बादल का मुख चूमूं
पर चाहे संसार
बांध मेरे पांव
मुझे बंदी सा रखना…
            
रख ले चाहे ,
पांव जकड के
रख ले ,
जंजीरों में जड के
मन मेरा आज़ाद परिन्दा
जित चाहे उत जाए…
जी चाहे रेती में लोटे
जी चाहे
लहरों से खेले,
चांद सितारों से भी आगे
दूर क्षितिज छू आए……।
                     

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