Thursday 29 December 2011

फासला न कर


जिन्दगी
मुझसे इतना
फासला न कर
नई नई ही अभी यह पहचान है
आधी अधूरी सी अपनी दस्तान है
कहने को बहुत शेष है
सुनने को ढेर सी
चढ्नी दोस्ती को अभी परवान है
कातर मेरी पुकार को
यूं अनसुनी न कर
जिन्दगी मुझसे इतना
फासला न कर

माना कि तेरा हमसफर
कोई और है मगर
मंजिल हमारी एक है
और एक है डगर
ना ले सकें अगर हाथों में हाथ तो
सरे राह चल तो सकते हैं साथ साथ हम
जिस राह के कंटकों से
घायल हों कोई पांव
उस राह की पीडा में मुझे
जान के न डाल
ऐ जिन्दगी मुझसे
इतना फासला न कर
कि ढूंढता है मन तुम्हें
अब बातबात पर

यूं तो दरकिनार किए
चल रहे हैं हम
क्या गम है क्या खुशी है
सभी एक से समझ
इन्सान हैं अदना से मगर इस जहान के
मायूसियों के जाल में उलझ जाते हैं अक्सर
जिन्दगी मुझसे
इतना फासला न कर…।!!

3 comments:

  1. fasle ko bayan karti jindagi se judi ek achchhi rachna ,bahut khub shashi ji .

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  2. thankx a lot....number kuchh jyaadaa nahi hai..???

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