Saturday 3 December 2011

लम्हे



क्षण भर भी नहीं भूलता मन
तुम्हारे संग बिताए
खूबसूरत लम्हों को


वह शाम………
झुपुटे अंधेरे में
झील के ठहरे पानी पर
तैरती हमारी बोट
तुम्हारे हाथों में मेरा हाथ
आसमान पर सितारे
और ठंढी हवाओं का साथ
पानी में उठती तरंगें
कितना हिल मिल गई थीं
हमारे मन की हिलोरों से…
चंचल हवाओं का रुख
कितना एकसार हो गया था
हमारी धड्कनों से………
           
वह सुबह…
पथरीली राहों पर
गिरते संभलते
डगमगाते कदमों से चलते
कभी तुम्हारा मुझको संभालना
कभी  मेरा तुम्हें बाहों से थामना
और हम पहुंच गए थे
एक ऊंची सी पहाडी पर
कितना सुंदर लग रहा था
नीचे का हरा भरा मैदान
खूबसूरत जंगल पहाड
दोनों हाथ फ़ैलाकर
पूरी दुनिया को समा लेने का
तुम्हारा वह खूबसूरत अंदाज़
और तुम्हें पलकें मूंद लेने को कह कर
छू कर भाग जाने का मेरा अल्हड अंदाज़

और फ़िर उस दिन लम्बी ड्राइव पर
जाते हुए ,
रास्ते में छोटी सी नदी का मिलना
बाल-सुलभ चंचलता के साथ
तुम्हारा ,मेरा हाथ थामकर
ठंढे पानी में छप-छप चलना
खुद भींगना
और हाथों में भर भर कर
मुझे भिंगाना……
फ़िर नजरों में नजरें डालकर
एकटक न जाने क्या देखना
क्या सोचना
क्या समझना
और क्या महसूस करना
कि एक ही झटके में
तडपकर एक दूसरे की बाहों में समा जाना
कभी नहीं भूल सकते
उन लम्हों की तासीर
कभी भुलाए नहीं जा सकते
वे हसीन लम्हे……………

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