Tuesday 13 December 2011

ताला


दिन भर
सैकडों सवालों से जूझती
हजारों परेशानियों के हल ढूंढती
थकी हारी
घर लौटती हूं
द्वार पर लगा ताला
प्रश्न भरी निगाहों से देखता है
स्नेह भरी वाणी मे पूछता है
आज इतनी देर…?
मुझे हर रोज उसके इस सवाल में
पिता का दुलार झलकता है
आंख भर आती है
कहती हूं
हां !
आज काम कुछ ज्यादा था

ताला खोलकर भीतर आती हूं
फिर जुट जाती हूं
रोजमर्रा के कामों में
सुबह फिर रू--रू होते हैं हम
और कहता है ताला---
जल्दी लौटना
सांझ न करना
मां की फ़िक्र की तरह !
         
निकलते हुए घर से
विदा भी करता है ताला
और घर में आने पर स्वागत भी करता है
यही ताला
सोचती हूं
कहां छोड आए हमलोग
वो फ़िक्रमंद निगाहें
वो आसरा देखती धडकनें
और वो स्नेहसिक्त सवालात
हर रोज के
बिना शर्त बिना नागा
  
महसूस होता है ताले का कद
उन सवालों के कद की तरह ही
कितना बडा है मुझसे
मैं तो बौनी सी
छुई मुई सी उसके संरक्षण की
मोहताज हूं
वह मुकर जाए किसी दिन
घर बार संभाल कर रखने से
रखवाली करने से
लगातार यूं एकान्त भोगने से
तब…??
दिन भर गिनता होगा
आने जाने वालों के कदमों की आहट
सुनता रहता होगा
घडी की टिक-टिक
अनवरत
और करता होगा इन्तजार
हमारे लौटने का
बच्चों के लौटने का
कि गुलजार हो जाए घर
गूंजने लगें आवाजें
हंसी ठहाके किलकारियां
सुख और तसल्ली मिले उसे भी कुछ कुछ

कोई पूछे उससे
क्या वह चाहता है कभी सुनना
कोई चीखती चिल्लाती आवाज
गरजना ,बरसना आपस में
झगडे करना भाई-भाई का
तू-तू मैंमैं सुकुमारियों के
किसी ने जानने की कोशिश नहीं की
कितनी कोफ़्त होती है उसे भी
इन बेवजह के विवादों से
कितना छीजता होगा
उसका कलेजा
जिसने सदियों से सहेजा है
इस घर की मर्यादा ,
पहले ही दिन से
जब ईंट गारे की इस गढन को
घर का दर्जा मिला
और तब तक रखेगा ख्याल इसका
जब तक इस घर की
एक भी दीवार है सलामत

3 comments:

  1. तालो की ख़ामोशी से झाकती जिंदगी , बरबस व्यस्त समाज की हकीकत

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  2. dhanyavaad....rajesh ranjan ji..
    dhanyavaad jyoti ji...itnaaaa number...???

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