Thursday 8 December 2011

मेरा बेटा –सपना मेरा


मैं अक्सर देखा करती थी
एक सपना
एक झिलमिल-झिलमिल रूप
मोहक,सलोना
उसे प्यार से थपकती
पालने में सुलाती
और धीमे-धीमे लोरियां सुनाती

यह तब की बात नहीं
जब मैं खुद मां की लोरियां सुनकर
सोती थी ,
तब की भी नहीं
जब पिता की उंगलियां पकडकर
चलती थी 
और तब की भी नहीं
जब सखी-सहेलियों से घिरी
गलबतियां करती रहती थी

यह तब की बात है
जब पिता के आंगन से
निकलकर , रोती-सुबकती
मुडमुड कर पीछे देखती
एक नए परिवार में गई थी
प्यार-दुलार भरा ,मान-सम्मान भरा
माहौल
फ़िर मिल गया था
अपना घर संसार बसाने में
तन्मयता से जुगई थी……

विरासत में मिले
संस्कार,सीख और उपदेशों को
अनमोल निधि की तरह
हृदय में सजाए
रिश्तों नातों की नाजुक, पर मजबूत
डोर को यथासंभव बटोरती,समेटती
उनकी गर्माहट की भीनी-भीनी
आंच में तन-बदन सेंकती
पुलकित होती रह्ती और तभी
नए-नए सपने बुनने लगी थी………
तब एक दिन
मां ने लाकर तुम्हें मेरी गोद में दिया

उजले, नरम रूई के फ़ाहे जैसी रंगत
बडी-बडी आंखें
छोटी-छोटी उंगलियां
और सबसे सुंदर
भोर की प्रार्थना जैसा
तुम्हारा स्वर………
सांझ के गीत की तरह तुम्हारा रोना
एक झंकार सी जा उठी थी
मेरे रोम-रोम में…………
मैंने आंचल में लपेटकर तुम्हें
हृदय से लगाया……
तुम एक शीतल सुकून की तरह
मेरे रग-रग में व्याप गए
मन की अतल गहराइयों से मैंने
उस अंतर्यामी को स्मरण कर
तुम्हारा कोमल मुख चूम लिया……

तुम ,
मेरे सपनों का हू--हू
प्रतिरूप……
बढने लगे मेरी गोद में
अंगुल अंगुल ,बित्ता बित्ता
चलने लगे मेरी उंगलियां थाम
करने लगे गोल गोल बातें
अपनी तोतली बोली में
और मोहने लगे घर भर का मन
दिन पर दिन………

तुम्हारी दीदी तुम्हें पाकर झूम उठी
सहेज कर रख दिए उसने
अपने गुड्डे-गुडिया
मोती मूंगे ,
अब तुम ही बने उसके भाई ,सखा,
खेल और खिलौना……
तुम दोनों में खूब स्नेह रहता
मैं अपनी दो आंखों की तरह
पलकों से झांपकर रखती तुम दोनों को
अनगिन सपनों के काजल आंज आंज

चांद की शीतलता और सूरज का उजाला
दोनों पाया मैंने
मेरा घर जगमग करने लगा
अगरू चंदन की महक व्याप गयी
कोने-कोने में………
छोटी-छोटी शरारतों में उलझी रही मैं तो
कुछ पता ही नहीं चला
अभी उस दिन तुम्हारे बराबर खडी हुई तो देखा
मुझसे बित्ते भर ऊंचा कद तुम्हारा
मैं गुडी-मुडी होकर सिमट जाती हूं
तुम्हारे स्नेहसिक्त पुकार की छाया में
जब तुम मम्मा कहकर ठुनकते हो अब भी
मनवा लेते हो अपनी हर बात
मेरे दुलार का फ़ायदा लेकर
फ़कारती भी हूं तुम्हें
जब पीछे-पीछे छाया की तरह लगे रहते हो मेरे
पर मैं जानती हूं मेरे लाल…!
तुम मेरे शरीर का एक हिस्सा ही नहीं
मेरा पूरा वजूद ही हो
मेरे सुकुमार सपनों का रूप,बिल्कुल जीता जागता स्वरूप !!                   

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