Monday 19 December 2011

मैं तैयार हूं


बंद थीं आंखें मेरी
दूर बहुत दूर
एक नन्हा सा उजाला उभरा
धीरे धीरे धीरे धीरे
आने लगा करीब…
देखती क्या हूं
वह बिन्दु फैलता जा रहा
पूरी परिधि विस्तार पा रही उसकी
रौशनी आहिस्ता-आहिस्ता
तीव्र होती जा रही…

ज्यों-ज्यों नजदीक आता जा रहा
वह प्रकाश पुंज
एक अजीब सुकून का एहसास
भरता जा रहा ज़ेहन में
देह जैसे हल्की-फ़ुल्की होकर
हवा में उठ जाने को
बेताब हो रही…
शांति, अद्भुत शांति…
कोई वेदना नहीं
कोई चिन्ता भी नहीं
किसी का कोई ख्याल नहीं
दिल दिमाग खाली-खाली
माया सो रही थी शायद;
शनै: शनै: उसकी नींद खुली
मुमकिन है उसने चौंक कर देखा हो
अपनी पकड यों ही कैसे ढीली होने देगी
जकडेगी, भरपूर प्रयास करेगी
जकडने का…
और उसने किया भी……

अचानक मुझे याद आया
मैं हवा नहीं ,
शून्य नहीं ,
मैं उजाला भी नहीं
मैं तो एक शरीर हूं
खूबसूरत स्वस्थ शरीर…
इस धरती पर रहने वाली
चहुं ओर से भरी-भरी
घर-परिवार नाते-रिश्तों से घिरी
जन-परिजन ,
अनगिनत मोह बंधन
और यह लपककर आता हुआ उजाला
और कोई नहीं मेरा मुक्ति पथ है
शायद पूरी हो गई मियाद मेरी
अब चलने की बारी है

मैं घबरा उठी
पसीने की बूंदें तडक आईं
दिल धडकने लगा जोर-जोर से
मैंने मुडकर
अपने परिवार की ओर देखा
परिवार……
यानि पति, पुत्र, पुत्री
भाई-भतीजे……
एक एक कर पुकारने लगी सबको
मैं जा रही हूं
देखो, मैं जा रही हूं
अभी के अभी जा रही हूं
कोई चलो मेरे साथ
कोई तो चलो मेरे साथ
   
पति ने कहा—
जब देखो किताबों में डूबी रहती है
नींद में भी बड-बड कर रही
मुंह फ़ेर लिया
मन पूछता है
यही हैं न !
जन्म-जन्मांतर का बंधन है जिनके साथ…?

पुत्र बोला---
मां, सोने दो न !
रात देर तक पढाई करता रहा
दोस्तों ने भी तंग किया रात भर
अभी-अभी तो सोया हूं
नींद पूरी न हो तो
दिन भर मन चिड-चिड करेगा
जानती हो न ?
आंसू भर आए आंखों में
मन फिर पूछता है
यही है न लाडला ??
प्यार किए बगैर सोने नहीं जाता
मम्मा मम्मा रटता रहता है…

पुत्री बोली---
क्या हुआ मां !
सर दर्द हो रहा क्या ?
दबा दूं ?
कितना काम करती रहती हो
अपना तनिक भी ख्याल नहीं रखती
दवा भी समय पर नहीं लेती
एक कप गर्म चाय पी लो
तुरंत आराम मिलेगा
पर मुझे थोडा और सोने दो
सोने दो न प्लीज !!
यह मेरी बेटी है
कलेजे का टुकडा
जब से जन्मी
हृदय से लगाए फिरती रही
इसका चेहरा जरा भी मलीन हुआ नहीं
कि मेरा दिल बैठने लगता
दो बूंद आंसू ढुलक आए गालों पर…
    
अब किससे कहूं
कौन चलेगा साथ मेरे ?
और कोई क्यों चलेगा ??
सब की अपनी-अपनी यात्रा है
जीवन यात्रा…
सब को अपने-अपने हिस्से के सुख दुख
भोगने हैं
जितनी सांसे जिसको मिली हैं
उससे कम कोई कैसे ले सकता है ???
    
मेरा तो अब काम ही क्या
याद करने की कोशिश करती हूं
कोई गांठ तो नहीं मन में
कोई बोझ तो नहीं चेतन अचेतन पर ??
हो पाउंग़ी न मुक्त पूरी तरह
खूब जोर देती हूं
दिमाग पर
कभी किसी का दिल दुखाया हो
या आहत किया हो कलेजा किसी का
जाने अनजाने
किया भी होगा
तो याद नहीं आ रहा
कौन याद रखता है
अपनी गलतियों को
अपने किये बुरे व्यवहार को

याद करती हूं
किसी का कर्ज तो नहीं माथे पर ?
पिता को दिया वचन
कि निबाहूंगी नाते रिश्तों की मर्यादा
करूंगी मदद सबकी यथासंभव
निभाया तो है न मैंने सामर्थ्य भर ?
गुरु को दिया वचन
कि झूठ नहीं बोलूंगी
करूंगी सेवा दीन दुखियों की…

मन घबराने लगता है
कहां किया कुछ भी
कुछ भी तो नहीं किया अभी
न माता-पिता की सेवा की
न भाई-बंधुओं के मान-सम्मान का
कर्ज अदा कर पाई
न दोस्तों को दिया वचन निभा पाई
जिन्होंने समय-असमय
नि:स्वार्थ मदद की मेरी
खडे रहे एक पांव पर
मेरे पुकारने से पहले ही
आ जाने को तत्पर
न संतान के दायित्वों से ही
मुक्त हो पाई अभी
और तो और
जिसे वचन दिया
कि साथ निभाउंगी उम्रभर
उसे भी तो छोड कर जा रही
कया करूं
कैसे जाऊं?
माया ठगनी पांव की बेडियां खोले
तब न जाऊं
और भी कसके जकडती जा रही

कल्पना करती हूं
आंसुओं के सैलाब की
जो बहेंगे बच्चों के नयनों से
कुम्हला जाएंगे वे एक-ब-एक
क्या करूं
कुछ समझ में नहीं आता
उजाला तीव्रतर होता जा रहा
आंखें अब चुंधियाने लगीं
क्या बोलूं
घबरा रही हूं
समय कम है
क्या कहूं इस रौशनी से
कह दूं कि ले चलो
या कहूं कि रहने दो
अभी कुछ दिन और
भटकने दो इन्हीं माया जालों में
अभी कुछ दिन और
पूरा कर लेने दो कुछ सपने
कर लेने दो सारे अधूरे
काम पूरे
पर कितने दिन…?
कितने दिनों में हो जाएगा
मेरा सब काम पूरा
कितने समय में कर लूंगी
सारे हिसाब-किताब बराबर
कितने दिनों की मांगूं मोहलत ???
नहीं सोच पा रही
नहीं बता पा रही
   
तो फिर---
छोड क्यों न दूं अपने आप को
उस परम सत्ता के हवाले
जिसने रचा मुझे
क्या काम लेने थे उसे मुझसे
वह जाने
क्या क्या ले पाया मुझसे
यह भी वह जाने
मैं क्यों करूं चिन्ता ?
मैं क्यों होऊं परेशान ?
मैं तो महज एक कठपुतली थी
जैसा उसने नचाया
नाचती रही
जन्म से अब तक
कभी हंसाया कभी रुलाया
वह करता रहा वह सब
जो जो उसके जी में आया

एक झटके में तोड डालती हूं
सारे विवाद की डोर ही
मोह माया के जाल से
मुक्त कर लेती हूं खुद को
दोनों हाथ उठा कर जोर से
पुकारती हूं………
ले चलो मुझे
ले चलो
मैं तैयार हूं
तेज रौशनी पडती है आंखों पर
और
खुल जाती है आंख मेरी  !!!



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