है धुंध अभी कुछ बाकी
नहीं छंटा अंधेरा नभ का
जब पूर्ण उजाला हो ले
तब आना मुझसे मिलने
हर रैन दिवस का मिलना
है उत्सव धरा गगन का
किरण किरण सज-धज कर
जब द्वार क्षितिज का खोले…
तब आना मुझसे मिलने
हैं विरह मिलन के किस्से
धरती के चप्पे चप्पे
कोई किन नयनों से देखे
कोई किन शब्दों में बोले
इन लहरों की तडपन में
है कितनी कितनी तृष्णा
यह राज समंदर खोले
तब आना मुझसे मिलने
जब जन्मों की भटकन का
तुम सही आकलन कर लो
जब सदियों की चाहत से
इस रिक्त ह्र्दय को भर लो
है धुंध अभी कुछ बाकी
नहीं छंटा अंधेरा मन का
जब माया वरण हटा ले
तब आना मुझसे मिलने…
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