मेरा तुमसे वादा है
चुप रहने का
लाख जमाना पूछे
कुछ न कहने का ,
जरुबेरा के फूल ने
छुप कर देखा था
फूलों से जाकर कह देगा
तो फ़िर क्या होगा…
हरी दूब पर उस दिन
हम-तुम लेटे थे
बातों बातों में ही
सांझ उतर आई…
पीले पीले पंखों वाली
एक तितली ने देखा था
बाग में जाकर कह देगी
तो फ़िर क्या होगा
घनघोर बरसती बरखा में
हम दोनों जब भींगे थे
सराबोर होकरके ही
उस दिन घर को लौटे थे ,
कागज की एक नाव ने हमको
मुड मुडकरके दे्खा था
गली में जाकर कह देगी
तो फ़िर क्या होगा
फूलों तितली और
कश्ती की छोडो बात
अभी रुपहले सपनों
से रौशन है रात
जब निशा ढले और
सुर्ख उजाला हो जाए
मन मोर मचा दे शोर
तो फ़िर क्या होगा
जब बाग ह्रदय का
रहे सदा महका महका
और दिल सुवास से
रहे सदा बहका बहका
यह वो सुगंध है
छुपा नहीं सकता कोई
संग पवन ले उडी
तो फ़िर क्या होगा
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