Monday 12 December 2011

मैंने एक सपना देखा


मैंने एक सपना देखा
मेरी आंखों में सांस लेने लगा वह
मेरी मुस्कुराहटों में पनपने लगा
खूब ऊधम मचाता
जागते सोते,
कहीं भी जाऊं
कुछ भी करूं
रंग बदल बदल कर
रूप बदल बदल कर तंग करने लगा…

आखिर एक दिन मैंने
उतारकर उसे अपनी आंखों से
एक पौधे पर रख दिया
वह पौधा तेजी से बढने लगा
पत्तियां लहलहा उठीं
कलियां खिल उठीं
सपने ने सींच दिया उसे भी शायद…
 
अब वह पौधा पेड की शक्ल ले चुका
घनी- घनी पत्तियों वाला
ढेर सी शाखाओं वाला
प्यारे प्यारे फूल खिले रहते उसपर
बारहों मास ,
आने जाने वालों की निगाह खींचता बरबस
अपनी ओर …
और वह पेड
सपनों वाला पेड
गुलाबी फूलों से भरे सपनों वाला पेड
बांटता रहता खुशियां
सुकून और राहत के पल
हरदम………॥
                   
अब देखती हूं ठीक उसके पार्श्व में
उग आया है एक नन्हा पौधा
यह भी बढेगा
शाखें इसकी भी ऊंची होंगी
और वह सपना फ़लांग कर
आ जाएगा इस पर भी…
और फिर फूलों से भरेगा
छाया देना सीख लेगा
इसकी भी पत्तियां
बारिश में आसरा, गर्मी में छाया
और सालों भर सुकून देंगी
फूलों से लदकर…
                 
ऐ काश !
कि उसके भी पार्श्व में
एक पौधा उगे
उसके भी, और फिर उसके भी
और इस तरह सारी धरती
परिणत हो जाए फूलों भरे बाग़ में
हर तरफ झरें खुशियों के फूल
                       
ऐ काश !
कि देखें हर आंखें कुछ ऐसा ही सपना
और सपनों से भर जाए यह पूरी कायनात
सपनों की रंगीन किलकारियों से…॥

   

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