Friday 2 December 2011

मां अब भी


मां अब भी
अकेले पलों में
तेरा ही ख्याल आता है
जब मुझे सुकून की तलाश होती है
एक कंधा
जिस पर रख सकूं सिर अपना
और आंखें मूंद लूं
तू प्यार से पूछे
पुचकार कर पूछे
बार-बार पूछे ,
और मैं
तेरे हाथों का स्पर्श अपने गालों पर
तेरी उंगलियों का स्पर्श
अपने बालों में
महसूसती रहूं
पर कुछ न कहूं………।
तेरी गर्म सांसें छूती रहें
मेरी सांसों को
मेरी धड्कन तेरे दिल के साथ
मिलकर धडकती रहे
तू मुझे धीरे-धीरे
गोद में समेटती रहे
और धीमे-धीमे पुकारती रहे
मैं सुनती रहूं
पर कुछ न कहूं……॥
कभी जब मन बेहद
खुश-खुश रहता है तब भी
ढूंढता है तुम्हें
कि दौडकर भर लूं तुम्हें
बाहों में
और लिपट जाऊं तेरे सीने से
तू बौराई सी ताकती रहे
हौले हौले पुचकारती रहे
पर कुछ न कहे……
बतियाती रहे मेरी जुबान
बिना कुछ कहे ही
बहुत कुछ
सब कुछ…
और सुनती रहे तू
मुझे देखकर ही
मुझे छूकर ही
मुझे महसूस कर ही
बहुत कुछ
सब कुछ………!!

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