Tuesday 6 December 2011

सावन की द्स्तक


भींगे हाथों दस्तक दी है
सावन ने
सुन बूंदों की बतियां ऐ मन !

बारीख बूंदें हवा में
ऐसे लहरातीं
फ़िज़ां हमेशा धुआं धुआं सी कहलाती
मौसम गाता प्रेम-गीत
झडियों की धुन पर
नन्हीं फ़ुहारें मस्त हो रहीं
जिनको सुनकर्
मेघों का गर्जन शंख नाद
खुशहाली का
धरती ने आंचल ओढ लिया
हरियाली का
पत्तों पर अटकी बूंदें
टप-टप टपक रहीं
विरह भरे मन में
पीडा बन कसक रहीं
छत पर गिरकर वे ही बूंदें
झरनों सी झ्ररती
रहती हैं
गली से निकली नदियों में
कागज़ की कश्ती
चलती है
आंगन में चूनर सूख रही
नव वधुओं की
धानी-धानी
ताप से चटकी धरती का मन
हरा-भरा पानी-पानी
यह मौसम खुशहाल ,
मनोरम सावन का
परदेश गई बिटिया के
अंगना आवन का………!!

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