Sunday 18 December 2011

यह भी तो सोचो


जब खत्म हुई मुलाकातें
तब कितनी कितनी बातें
थीं मन में
कहने सुनने की ,
पर कह नहीं पाई
फिर दिल को अपने
कितना पडा समझाना
यह भी तो सोचो…

आज का मिलना अपना
जैसे सच हो जाए
कोई भोर का सपना
मैं सपने तुम्हारे सिरहाने लेकर
सोई थी रात भर
यह भी तो सोचो…
             
कवर पृष्ठ था बाकी
मेरी किताब का
और जाने कितने पन्ने थे
कोरे-कोरे
तुम जो मिले तो पन्ने भर गए
रंगों से, और कितने-कितने
आखर रच गए प्रेम के
यह भी तो सोचो…

अब कैसे कहूं
और कितना बोलूं
इस मन को आखिर
मैं कितना खोलूं
कई जन्मों की बातें
पल में कैसे पूरी होंगी
यह भी तो सोचो…।


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