बारिश होकर
थम भी चुकी है
सूरज की आभा
चारों तरफ़ फ़ैल रही है
धुला धुला सा गगन
और भींगी भींगी धरती ,
हवा भी गुनगुनी सी बह रही है
सामने
घास के मैदान में
ठहर गए थोडे से पानी में
गोल गोल तरंगें उठ रही हैं
शीशे की तरह
साफ़ झलकते पानी में
तुम्हारा चेहरा
मुस्कुराता दीख रहा है
हैरान हूं
यह तुम हो
या मेरी आंखों की खता है
जो हर वक्त ,हर जगह
बस तुम्हें ही ढूंढती रहती है…
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