ऐ मेरे मन !
खुशियों की कामना कर
पर इतनी
नन्हें हाथों की अंजुली में
समा पाए जितनी…
इस भागम-भाग भरे जग में
कुछ पल राहत के
भी पा लें
औरों से कदम मिला करके
हम चल भी सकें
पीछे न रहें……
सुख की सांस ,
नींद चैन की मिलती रहे
फ़िर शेष तमन्ना
कुछ न रहे…
ना दिल टूटे
किसी और का हमसे
और कोई नाराज न हो
कोई कडवे बोल कभी लब पर
भूले से अपने आ न सके
फ़िर इससे ज्यादा
क्या मांगे
फ़िर इससे ज्यादा
क्यों मांगे…?
मत हो अधीर और ख्वाहिश रख
खुशियों की मगर
ऐ मेरे मन ...
तू बस इतनी !!
पत्तों से छनकर धूप
धरा पर आती है जितनी………।!!
Very good creation.
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