Friday 9 December 2011

ख्वाहिश


मेरे मन !
खुशियों की कामना कर
पर इतनी
नन्हें हाथों की अंजुली में
समा पाए जितनी

इस भागम-भाग भरे जग में
कुछ पल राहत के
भी पा लें
औरों से कदम मिला करके
हम चल भी सकें
पीछे रहें……
सुख की सांस ,
नींद चैन की मिलती रहे
फ़िर शेष तमन्ना
कुछ रहे

ना दिल टूटे
किसी और का हमसे
और कोई नाराज हो
कोई कडवे बोल कभी लब पर
भूले से अपने सके
फ़िर इससे ज्यादा
क्या मांगे
फ़िर इससे ज्यादा
क्यों मांगे…?
मत हो अधीर और ख्वाहिश रख
खुशियों की मगर
मेरे मन ...
तू बस इतनी !!
पत्तों से छनकर धूप
धरा पर आती है जितनी………!!

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