Wednesday 14 December 2011

ये मेरे शब्द


ये मेरे शब्द
मेरे भाव हैं बिखरे-बिखरे
इन्हें तरतीब से रख दो
कहीं सुभीते से
ये मेरे जज़्बात,
मेरी कल्पनाएं हैं तितर-बितर
पिरो दो इन्हें धागे में
मोतियों की तरह
गूंथ दो इनको करीने से साथी
इनकी किस्मत तनिक सुधर जाए

काट-छांट कर
संवार दो इनको ,
तराशकर ज़रा निखार तो दो
कहीं हलन्त, कहीं विसर्ग
कहीं प्रत्यय, कहीं उपसर्ग
कहीं विराम भी लगा दो
कि खूबसूरत सी कविता
कोई बन जाए

जैसे सद्य:स्नात को
सजाया जाता है
नख-शिख सिंगार करके
सजा दो मुझको भी
इस तरह से कि
मेरा अंतस रौशनी से भर जाए
  
तुम्हीं से कहती हूं
तुम्हारा नाम लेकर
जैसे दूर से आवाज
देके बुलाया जाता है
तुम्हारा साथ जो मिल जाए तो
मेरे लम्हों की हरेक शै
अनमोल हो जाए

No comments:

Post a Comment