Sunday 4 December 2011

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        चित्रकार.....
चित्रकार..!
तेरी कूची
जिन रंगों को छू करके
इतने सुंदर चित्र बनाती
रगों की उस पट्टिका में
एक रंग नया
खुशरंग सरीखा
कहां से आया…?
जिसकी आभा से चित्र तुम्हारे
बोल रहे-से लगते हैं
यह दुनिया भी अनगिन रंगों की पट्टिका है
उस चित्रकार की कूची
जिनको छू करके
ऐसे अद्भुत  चित्र बनाती
हर दिल में शाश्वत प्रेम जगाती…॥
                            
          कथाकार

कथाकार !
जिन भावों में डूब डूब
नित नयी कहानी लिखते हो
उन भावों में ,उन ख्वाबों में
उन नैसर्गिक कल्पनाओं में
नित नयी चेतना कहां से आती
जिनके रंगों में रच- बस के
हर कथा तुम्हारी
इतनी जीवंत ,इतनी मनहर
बन जाती है
मन खोल रही -सी लगती है
दुनिया भी एक कहानी है अनगिन भावों की
हर पल हर क्षण जो
रंग बदलती रहती है
सुख के ,दुख के हर लम्हे
कुछ कुछ रचते हैं
और निशा दिवस
गुपचुप उनको पढते रहते हैं……!

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