हरित बांस की
बांसुरिया
कितना मीठा तुम गाती हो…
कहां से लाती
सुर सरगम
और तान कहां से लाती हो !
कौन जनम के पुण्य
तुम्हारे
कृष्ण सखी कहलाती हो…
भोली हमारी
राधा रानी
काहे उन्हें सताती हो !
सांझ सकारे
मधुर मधुर धुन
दसों दिशा बिखराती हो…
जिनके मन
संगीत बसे, उन
अधरों पर मुस्काती हो !
जिन चरणों का
जग दीवाना
उन्हीं से प्रीत निभाती हो…
कृष्ण रूप की
छटा निराली
तुम कुछ अधिक बढाती हो !
हरित बांस की
बांसुरिया
कितना मीठा तुम गाती हो… !!
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