Tuesday 27 September 2011

तब छांव छांव चलना साथी


मेरी छांव छांव चलना साथी
जब धूप गमों की
हो तीखी
कांटों सी यादें चुभती हों
नयनों में छलके हों मोती
या व्यथा सहन से
ज्यादा हो
और मन पर कोई बोझ सा हो
तब याद मुझे करना साथी
मैं छांव करूंगी
पलकों की
आंसू ले लूंगी आंखों में
मुस्कान लबों पे जड दूंगी
उल्टे फ़ंदों से 
बाहर ,
शुरुआत नई हम कर लेंगे
यहां सब कुछ कितना सुंदर है
फ़िर मिल जुल कर
हम रह लेंगे 
वो सारे जतन करूंगी मैं
जो अब तक मैंने है सीखी
मेरी बांह थाम लेना साथी
कि राह सहज हो
जीवन की
और साथ साथ चलना साथी
कि धूप लगे हरदम मीठी………

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