एक बूंद छलक कर
गागर से,
जैसे बाहर को आ जाए
एक सीप निकलकर
सागर से,
ज्यों नरम रेत पर आ जाए
एक फ़ूल उतर कर
डाली से,
उपवन में जैसे घूम रहा
या एक सितारा अंबर का
आंगन में आकर
झूम रहा……
ख्वाबों की कश्ती में बैठी
मैं मगन रही
अपनी धुन में,
एक बात अचानक
आंखों में एक प्रश्न चिह्न
बन आई क्यूं
तेरी यादों के धागे में
उलझा जाता है
यह मन क्यूं……
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