ना शब्दों की आहट हो
और ना ही
स्वरों की आपाधापी
ना पलकों का खुलना
ही जरूरी हो
ना नजरों का मिलना ही
एक चुप सी
लगी हो ,चाहे
भाव हलचल मचा रहे हों
बेताबी घबराहट की शक्ल
अख्तियार कर रही हो
या कि शांत बने रहने का
विफ़ल प्रयास कर रही हो
बहुत कुछ कह
डालने की हड़बडी हो
या कि कोई ओर छोर ही
न मिल रहा हो बातों का
छोड़ दो हालात के
भंवर में,
नाव मन की
बहने दो भावनाओं की
तरंगों में………
ऊब डूब करने दो
खूबसूरत खयालों के
सुगबुगाते ज्वार भाटों में
या डूब जाने दो
मदभरे तरगों में खुद को
मत बोलो कुछ भी
मत काम लो लफ़्जों से
बोलने दो सन्नाटों को
मन खोलने दो खामोशी को
और सुनो मौन की बात्………।
फ़िर देखना
कितना कुछ
कहा और सुना जा सकता है
बिना कहे , बिना सुने
कितनी तासीर है
इस शब्द विहीन वार्ता में
स्वर बिना सुर ताल में
तान और आलाप में
और लगातार बोलते
रहने वाले गुपचुप वार्तालाप में
जी भर सुनो
जी भर सुनो मौन की बात…………॥
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