कल रात मेरे सपनों ने
विद्रोह कर दिया
एक सीमा रेखा खींची थी
वो सबको लांघ गए……
सपने तो उड गए
नींद के खुलते ही
नजरें झुकी रहेंगी दिन भर
मुझको पता है लेकिन्……
कितनी बार कहा,देखो
छूना ना हाथ बढाकर
जाने क्या सूझी वो बढकर
बांहों में समा गए……
बार-बार समझाया,कि
मत देखो नजरें भर कर
जाने किस मदहोशी में
खुद को लुटा गए……
अब कहते हैं, फ़िक्र नहीं
क्या खोया है इसकी
जो पाया वह कई जन्मों के
मिन्नत का फ़ल है……
सपने तो उड गए
आंख के खुलते ही
पलकों पर लाज रहेगी तारी
मुझको पता है लेकिन………
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