बाल रवि के पलक अधखुले
लुकती छिपती किरणें,
खिली अधखिली कलियों
और फ़ूलों से आई मिलने…
हरी दूब पर बैठी थीं
कुछ नन्हीं नन्हीं बूंदें,
स्वर्णिम लडियां लेकर उनमें
हीरक आभा जडने……
ऊंचे पर्वत ने ओढी थी
धवल बर्फ़ की चादर,
सात रंग की कूची लेकर
उनमें रंगत भरने…
कब से जागे चहक रहे थे
नन्हे पंख पखेरू,
नरम ठिठुरते पंखों में
कुछ गर्माहट भरने…
नए वर्ष का सुखद सबेरा
शरद काल की बेला,
शुभ संदेश सुनाने सबको
जन-जन का दुख हरने…
बीता कल तो हम भी कल की
बातों का गम भूलें,
यश वैभव घर आंगन बरसे
कहती हैं ये किरणें……।
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