उसने पूछा
आऊं तो कैसे जानूं,
कौन सा घर है तुम्हारा…
वह बोली—
जिस द्वार पर
दीपक जलता हुआ दीखे
समझना वही घर है हमारा…
जब वह आया
चलते चलते रात हो आई
उस रोज गांव में
कोई त्योहार था शायद,
हर द्वार पर दीपक थे जले हुए
पग थम गए उसके
क्या करे अब सोचता रहा
तभी हवा चली
कांप उठी लौ दीयों की,
कुछ तो बुझ भी गईं
उसने ध्यान से देखा
दूर एक दीपक की लौ न तो
कांप रही ,
न डगमगा रहा उजाला ही
उसे ही देखता देखता
वह चला आया…
इस दीपक को
किसी ने आंचल की ओट कर रखा था……
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