कंकड ,बालू छान
चाक पर
रखूं खूब जतन
गीली मिट्टी का मन……
गढूं फ़ूल ऐसा
जो आंखों को सोहे
खुशबू से भर दे
सारा चमन……
गढूं ऐसी काया
कि पीडा पराई
मथ दे ह्र्दय को
भर दे नयन……
गढूं ऐसी मूरत
वरद हस्त जिसका
सर पर हमारे
रहे हर जनम…
गढूं चाहे कुछ भी
सांचे,बेसांचे
धूप कष्टों की जिनको
पकाए,तपाए
झंझा फ़िर चाहे
कितने भी आएं
ना टुनके,ना टूटे
कोई बरतन…
गीली मिट्टी का मन………
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