मैं दरिया,
मन मेरा
दरिया का बहता पानी है…
जल बरसा जब
नभ से ,तब यह
जग भींगा,
जब बरसे दो नयना
यह तन-मन भींगा
जल तो जल है
इसकी तो बस एक कहानी है…
सपना तो सपना है
एक दिन टूटेगा
कांटों में उलझा दामन
फ़िर भी छूटेगा
फ़ूलों से जाएं उलझ
यह तो नादानी है…
मन गीत जो लिखता जाता है
सुर में उनको भी ढलना है
दो पल बैठो पास मेरे,
कोई बात तुम्हें भी कहना है
घूंट घूंट कर पीना
मन की खुशियों को
दुनिया तो आनी जानी है…॥
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