बांधती हैं नजर
चिलमनें बार बार
छुपके कोई हमें
क्यों रहा है निहार………
जिन्दगी धूप थी
छांव बन तुम मिलीं
रात का था सफ़र
चांदनी बन खिलीं
आज मन ने किया
हसरतों का सिंगार…………
ख्वाहिशें थीं दबी
अब तलक निगाह में
लेके आए हैं हम
दिल तेरे पनाह में
चिलमनों से कहो
है नजर बेकरार…………
पूछतीं धडकनें
हमसे आज बार बार
छुपके कोई हमें
्क्यों रहा है निहार………।
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