किसी मोड पर
कभी अगर
दाता यह सवाल कर दे
कि बोल क्या चाहिए तुम्हे
मांग ले
अपने बीते हुए पलों में से
कोई एक ऐसा पल
कि जिसके मिल जाने से
संवर जाए तेरा आज
तेरा आने वाला कल…
तो कैसी उलझन होगी
सोचती हूं
क्या मांगेगे हम…?
कौन सा पल…?
वह—
जब हमने कुछ खो दिया
अनचाहे……
कि जिसके मिल जाने से
मिल जाए खोई हुई खुशियां
या वह---
जब हमने कुछ पाया
चलते चलते अनायास ही
और जीना चाहते हों
बार-बार उन पलों को
जब तक जी न भरे…
ऐसे तो कितने ही पल हैं
जिनसे रू-ब-रू होते आए हम
सरे राह…
कितना कुछ तो खोया हमने
कितना कुछ पाया भी…
बडी उलझन भरा
सवाल है यह……
हम अटक कर रह जाएंगे
इस सवाल के जंजाल में
निकल नहीं पाएंगे कभी
और जब अंतर की छटपटाहट
झेल नहीं पाएंगे
हारकर यही कहेंगे
हे ईश्वर !
इस असार संसार के पालनहार
तुम्हारी मर्जी सर आंखों पर…
जब जब जो दिया
अच्छा किया
जो ले लिया वह भी
अच्छा किया…
इतनी विनती है…
इस निरीह को
भटकन में न डालो
अब अपना यह प्रश्न लौटा लो…!!
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