वक्त का पंक्षी
उडता रहता बिना रुके
पल के मोती
चुगता रहता बिना रुके
दुनिया पेज पलट देती है
चुपके से
नई कहानी रचता जाता
बिना रुके……
चलते चलते वक्त
क्षितिज के पार जा पहुंचा
उसके कदमों के निशां
रह गए बाकी
यादों की रेती पर……
उसकी लुकती छिपती छाया
अंकित है जेहन में
कि अभी अभी
कुछ पाया है हमने
कब से जिसके सपने
संजोए थे मन में……
कि अभी अभी
कुछ खोया है हमने
जिसकी टीस रहेगी अंतर को
टीसती उम्र भर्……
वक्त बदल लेता है
झट से करवट
बह जाता है नदी की धार की तरह
सींच कर मन प्राण तक
मिलना और बिछडना
सुख और दुख
जुडवां भाई की तरह
एक दूजे पर दांव चलाते रहते हैं
भोगता रहता है आदमी
कि यही माया है
सोचकर……
समय के चपल चरणों को
कोई रोक नहीं सकता
कोई रुख भी नहीं बदल सकता इसके
उड जाता है नश्वर जीवन
कपूर की भांति
समय के पंखों पर
सवार होकर……
वक्त का पंक्षी
उस जादूगर की जादू से बंधा
समेटता है कभी
सहेजता है कभी ,
और लुटाता है कभी पलों के मोती
मुक्त हस्त…अनवरत…
बिना रुके…!
Yaad dilaata hai-Waqt ke din aur raat,waqt ke kal aur aaj,waqt kii har shai ghulam......
ReplyDeleteExcellent.