Sunday 5 February 2012

तोहफा


शहर में नई दुकान खुली है
गिफ्ट गैलरी
तरह तरह के उपहारों से भरी
छोटे बडे ,सस्ते महंगे
उपयोगी ,मनोरंजक
सजावटी सामानों से 
सजी हुई है पूरी दुकान...

लोगों की भीड़ उमड़ी पड़ रही
बच्चों का तो जैसे मेला ही है
किलकारियों से,
हंसी के फव्वारों से
गुंजायमान है वातावरण

मैं भी बडी फुरसत से
पहुंची वहां……
एक नजर देखकर ही
मन खिल उठा
चुन चुन कर निकालने लगी
छोटे छोटे उपहार
हवाई जहाज, गुडिया
की रिंग्स ,गाडियां
खिलौने, गुलदस्ते
इसके लिए यह,उसके लिए वह
लड़कों के लिए कुछ
लड़कियों के लिए कुछ

आंखों से देखकर ही उमड़ते हैं
मन में स्नेह भरे भाव....
हाथ से छूकर
वही भावनाएं जैसे प्रवेश कर जाती हैं
उन छोटी छोटी चीजों में
एक लगाव सा हो जाता है
जुड़ सा जाता है मन
आपस के प्रेम भाव और
दुलार प्यार भरे एहसास से

एक नजर देखती हूं
पूरी दुकान को
सोचती हूं
तुम्हारे लिए क्या लूं…?
कोई साज
तुम्हारे पास पहले से हो तो…?
कोई तस्वीर
तुम्हें पसंद न आई तो…?


कोई ऐसी वस्तु जिसमे
छुपी हो परवाह तुम्हारे लिए
और मुखरित हो स्नेह
भरपूर......

मेरे मन में जो कुछ उमड़ता घुमड़ता
रहता है तुम्हें सोचकर
क्या कोई भी वस्तु उसे
हू--हू उजागर कर सकती है कभी…?
कि कौन हूं मैं ?
क्या रिश्ता है तुमसे ?
कौन से बंधन हैं
किस जन्म के…?

बिजली
जो छुपी होती है
बादल के पूरे वजूद में
कभी क्षणांश को कौंधती है
तभी
देख पाती है दुनिया
वरना कहां छुपी होती है
कैसे एकसार हो घुली रहती है
कोई जान पाता है भला…??

मेरा भी सारा वजूद
जैसे
घुला हुआ है तुम्हारे वजूद में
जैसे सुगंध होती है फूलों में
उजाला समाया होता है किरणों में

एक रिश्ता
जो धरती पर रहने वाले चकोर की
चाहना का नाम है
आसमान के चांद के लिए
कि जिसको न तो चांद चाहिए
न उसका सान्निध्य ,
पर पलकें भी नहीं झपकाता वह
ताकता रहता है अपलक
कहते हैं
चांद जानता भी नहीं यह बात...
        
लौट आई मैं
नहीं ले पाई कुछ भी
सात पन्नों में कागज के
लपेटकर भेज भी दूं
यह सोचकर
कि ,
अनावरण करते हुए हर तह को
उत्सुकता बढेगी तुम्हारी
धडकेगा दिल
एक मिठास लिए
और खेलेगी मद्धिम मुस्कुराहट होठों पर
शायद तुम खोल नहीं पाओगे बंधन
रहने ही दोगे उसे जैसे का तैसा
कि यह नजर की छुवन से भी
मलिन न हो जाए कहीं
क्योंकि तोहफे की शक्ल में
मन है मेरा 
स्नेह से भरा…

मान सम्मान लिए…
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए…॥


1 comment: