Monday 20 February 2012

आओ मिल बांट के जी लें


प्रारब्ध रचाये खेल
खेलती दुनिया सारी
कहीं उजले उजले दिवस
कहीं रातें अंधियारी

सुख दुख सबको
बांटा उसने एक बराबर
खुशबू जिसको दिया
उसे कांटे भी देकर

दो पाटों में चलती है
जीवन की सांसें
घनी धूप में चलते हुए
छाया की आसें

सुख में डूबे रहकर भी
दुख का भय होता
और गमों के साथ ख्वाब
खुशियों का होता

जिन्दगी हमारे नजरिए
की मोहताज जो होती
देह हमारी खोलबंद
कछुए सी होती……


खोलो मन की आंखें
देखो नजर उठाकर
कण कण व्याप रही सुंदरता
है यह जीवन कितना सुंदर

कुछ मेरे हिस्से की
खुशियां तुम ले लो
और तुम्हारे गम के  
कुछ कतरे हम पी लें

आओ मिल बांट के जी लें


No comments:

Post a Comment